Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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त्रप
अर्थ
** षष्टांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतरकन्ध 4
अस्थि चोक्खा ! तस्स रुहिरकयस्त वत्थरस्स रुहिरेणचेत्र घोषमाणस्स क'इमोही? णो इट्टे समट्ठे, एवामेत्र चोक्खा ! तुम्भेणं पफाइवारणं जाब मिच्छादमण सल्लेणं त्थकाइ सोही, जहा व तरल रुहिरे यवत् र रुहिरणेचेत्र धोयमाणस्स ॥ एवं सा चोक्खा परिव्वाइया मजीविदेहावर कणाए एवबुत्तासमाया संकिया कखिया वितिगिच्छिया यसमावण्णा कलुमममात्रणा जायावि होत्था, मल्लीए विदेह रायवरकण्णाए णोसंचाएइ किंचिवि पामा इक्खित्तए, तुसिणीया संचिट्ठइ ॥ १०३ ॥ ततणं तं चोक्खं परिव्वाइयं मल्लीएविदेह रायवरकण्णाए
{ से शुद्धकर यावत् स्वर्ग में जाते है. तब मल्ल कुंवरी उसे ऐसा वोली अहो चौक्खी ! जैसे कोई पुरुष रुधिर से भराहुना बस्त्र रुधिर से धोवेतो क्या वस्त्र की शुद्धि होती है ? यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थान नहीं होती है. वैसे ही अहो चोक्खे! जैसे रुधिर वाला वस्त्र को रुधिर से धोने से शुद्धि नहीं होती है वैसे ही तुम्हारे मत ने प्रतिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से किसी प्रकार मे शुद्ध नहीं होता है. मल्ली कुरी के ऐसे } कहने पर वह परिव्रजिका शंकित हुई, कांक्षित हुई. फळ प्रप्त में संदेह हुवा, भेद व कलुष को प्राप्त हुई, और मल्ली कुंारी को किसी प्रकार से उत्तर देने में समर्थ नहीं हुई, जिम मे मौनस्थ रहे. ॥ १०३ ॥ मल्ल कुंबरी की दसियों चंटियों उ । चकखा परिव्राजिका की हलिना, निंदा खिलना करने लगी, कितनीक
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*१३* श्रापले नाथजी का आठवा अध्ययन +
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