Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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प्र
mamanna
। अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
मझमझेणं. णिक्खमंति २ त्ता विदेहस्त जणवयरत मज्झंमज्झेणं णिक्खमंति २त्ता जणेत्र काही जणवए जेणेव वाणारसीए नयरीए तेणेव उवागच्छइ २ ता अगुजाणसि सगडा सागडी मोएति २ त्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हति २ त्ता वाणरसीए नयरीए मझमझेणं जेणेव संखे कासीराया तेणेव उवागच्छइ २ । त्ता करयल जाव वधाति २ त्ता पाहुडं पुरओ ठावेइ २त्ता संखराय एवं व्याप्ती अम्हेणं . सामी ! महिलातोणं कुभए णवरीओ रन्ना णिव्विसयाआणेत्तासमाणा इहं हवमागया तं. इच्छामोणं सामी ! तुब्भं बाहुच्छाया परिग्गहिया णिब्भया णिरुव्यिग्गा सुहंसुहेणं परिवसियं
॥ ततेणं संख कासीराया ते सुवन्नगारे एवं वयासी किंण्णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! कुंभएणरन्ना देश में होते हुवे काशी देश में वानारसी नगगी में आये. वहां अग्र उद्यान में गाडे गाही छेडकर महामूल्यवाला नजणा लहर बानारसी नगरी के बीच में होते हुरे शंख नाम का काशी राजा की पास गये उन को हाथ जोडकर विज्ञाप्ति की कि अहो सामिन् ! मिथिमा नगरी में से कुंभराजाने हम को देशानीकाल
कीया है, इस से हम यहां आये हैं इस से अहो सामिना ! हम आपका आश्रय ग्रहण कर निर्भय निरुद्वेग "पने यहां पर सुख से रहना चाहते हैं. काशी दशके शंख राजाने उन सोनारों से कहा कि तुम को किस लिये कंभराना ने देश पर किये हैं ? सोनारों बोले अहो स्वामिन् ! कुंभ राजा की पुत्री प्रभावती देवीकी।
.प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदवसहायंजनाला सादजी.
अर्थ
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