Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक बालब्रमचारी मुनि श्री अमेलक ऋषीजी -
सारेणं तयाणुरूवरूवं णिवत्तेत्ति। ततेणं से चितगरदारए मल्लीए विदेहरायवर कण्णाए जवणंतारियाए जालंतरण पायंगुटुं पासंति २ त्ता ततेणं तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झयत्थिए जात्र समुप्पजित्था सेयं खलु मममलीएविदेहे रायवरकण्णाए पायंगुट्ठाणासारणं सरिसगं जाव गुणोववेयरूवं णिवत्तिए एवं संपेहेति-एदं संपेहेत्ता भूमिभागं सजेति २त्ता मल्लीएवि देहयरायवर क०गाए पायंगुट्टाणुलारेणं ज वणिवत्तेति।९०।ततणं सा चित्तगरसेणी चित्तसभं जाव हाव भाव चित्तेति, २ त्ता जेणेव मल्लदिन्नकुमारे तेणेव उवागच्छइ
२त्ताजाव एतमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति॥ ९१ ॥ ततेणं मल्लदिन्न चित्तरसंणिं सक्करति ऐमी चित्रकला की लब्धि हुईथी जिम किसी द्विपद चतुष्पद अथवा अपद (पांव विना)का कोई भी प्राणीका # एक देश विभाग भी देख लेवे तो उस अनुसार उसका संपूर्ण रूप बनादेता. उम चित्रकारने मल्लीकुंबरी के
पांव का अंगुठा पडदे की जाली में से देखा, इस से उस को ऐमा विचार हुआ कि मल्ली कुंवरी के 3
पांव के अंगुले से उस का सब रूप बनाना मुझे श्रेय है. पेमा विचार करके उसने भूमि को स्वच्छ की " यावत् एक अंगुठे के अनुमार से मब रूप बना दिया ।। ९० ॥ सब चित्रकारोंने चित्र सभा में हाव भाव युक्त सब चित्रों बनाकर मल्लीदिन्न कमार की पार गये और उन को उन की आज्ञा पीछो दी ॥२१॥
प्रकाशक राजाबहादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वाला प्रमादजी .
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