Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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व्हावेति २ सव्वालंकार विभसियं करेतिर त्ता पिउणो पायवेदिओ उवणे तण. सुबाहुदारिया जेगव रुप्पिर या तणव उगाच्छइ २ ता पायगाहणं करेइ ॥ ७॥ ततेण स रुप्पीराया सुबाहुदीरया अगिवरोइ सबाहदारियाए रूषणय जोवण्णेणय लवणेणय; विम्हए ॥७८॥ वरिधर सदावइ २ ता एवं वधामी-तुभण देवाणुपि. या ! मय दोण बहूण गामागर गिहाणि अणपत्र पविसह तं अस्थियाइते करसइ रणोश ईसरस्सा कहिंथिए रमए भेजगए दिटेपव्वे जारिसए इमीमे सब हदारिया मजणए ? ॥ तएण से वरसधर रप्पिरायं करयल जाव एवं वयामी.
एवं खलु सामी ! अह अन्नयाकयाइं तम्भं दे वाण महिलंगए तरणं मए कुभगस्सरनो - विभीषन कीताश्चत् पिता के पांच में वंदन करने के लिये यहां आई पग में वंदन नमन किया|७७॥हप्पीगजाने सुबाहु पुत्रों को पन गोद में बैटई, और माहु पुत्र का रूप,भानवला पण दग्बकस्विभ७८॥ वहां पर वर्षधर पुरुषों को बोला कर कहा कि अहो देवानु प्रिय ! मेरे आदेश में बहुन ग्राम नगर थावत मनिवश तुम प्रवेश न हो तो जैम मेरी साह पुत्री की जा उत्साह वैध मज्जन उत्सव
किमा स्थान क्या देखने में आया? वे वर्षधर रुपी राजा को हाथ जोडकर मा बोकि बोदवान 1ोपिय! मैं आपकी आज्ञा से एकदा मिथिल नगरी में गया था. यहां कुंभ राजा की पुषी . all
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिनी +
.कामराजावहादरलाला मुक्क्दवमयी माRARBी ।
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