Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 82
पुच्छा, जाव विहरंति ॥ २९ ॥ तएणं तीसे पभाई देवीए तिष्हं मासाणं बहु पडिपुण्णाणं इमेयारूवे डोहले पाउन्भूए, धण्णा माणं ताओ अम्मया तो जाओणं जलय थलय भासूर पभएणं दसवण्णणं मल्लणं, अच्छुय, पच्चच्या सयणंजसिं सण्णिस्सनाती सयणवण्णातोय विहरति ॥ एगंचण महासार सामगंड पाडल मलिय चंपय आसोय पुन्नाग, मरुयग दमणग अणोज कोज कारट पतिवर पउरं परम सुहफास दरिमाणजे महया गंधद्वाणंमुयंत, अग्घायमाणीओ डोहलं विणिति
॥ ३० ॥ ततेणं तीसे पभावतीए देवीए इमएयारूवं डाहलं पाउब्भूयं पासित्ता, अहा पालना करती हुइ विचरने लगी. ॥ २९ ॥ तीन मासे पूरा होते अभावती देवीको ऐना दोहद उत्पन्न हु ने कि उन माताओं को धन्य हैं कि जो जल व स्थल में उत्पन्न हुए देदीप्य पान तेजवंत, बहुन पांचौ वर्ण के पुष्प की मालाओं, पांचों वर्ण के पुष्पों से अच्छदित.प्रच्छन्न उपग उपरी पुष्षों वाली शैय्या में अच्छ तरह बैठकर मन के मनोरथ पूर्ण करती है. और शैय्यापर में रही हुई पाहल, मालती, चंपक, अशोक युनाग, मरुया दमण, अनवद्य, कुवज, कोरंट पत्रं इन के श्रेष्ट पत्र व पुष्पों से बनाया हुवा, देखने में है स्पर्श में बहुन मुख खारी और बहुत सुगंध फैल वैसा पुष्ष का गेंद (गोटा) को मुंघती हुई मैं या दोहर पूर्ण करूं ॥३०॥ प्रभावती देवी को ऐसा दोहद उत्पन्न हुवा जान कर पास में रह हुवे वाणव्यंतर
प्रकाशक राजाबहादर लाला मग्नदन महायजी ज्वालाप्रमाद जी .
अर्थ
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