Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
षष्ट ङ्ग ज्ञात धर्मव था की प्रथम श्रमस्वन्थ +
अण्णाकयाई जे
पिहाणं पडिम कारेति २ ता तरणं मल्ली विदेह रायवरकाण्णा विउलं असणं पाणं खा इमं साइमं आहारेति ततो मणुण्गाता असणं पाणं खइमं साइमाओ कलाकलि एगमेपिंडं गहाय तीसे कणग मतीए मत्थए हिदुए जाव पडिमा मत्ययंसि पविमाणी विहरति ॥ ४० ॥ नतेणं तीसणं कणगमतीए जाव मत्थय च्छडाएपडिमाए एगमेसि पिंडेप क्खिप्पमाणे २ पउपप्पल पहाणं वितता गंधे पाउ भवइ से जहा णामए अहिमडेतिया, गोमडेोता, पणरलडेतिया जाब एते अनितराए अत्रणामतराए ॥ २१ ॥ सेणं काले ते समपुर्ण के सलाणाम जणवए, होत्था तत्थणं सागएणामं नगरे तरसणं सागए जयरे बहिया उत्तरपुच्छिम दिलामागे छिद्रवाला ढक्कन बनाया, यावत् विपुल अशनादि का जो आहार वह करतथं उ में मेमना आदारादिका एक २ कवल कालोकाल उस छिद्र के द्वार से प्रतिमा में प्रक्षेपती हुई बेचने लगी ॥ ४० ॥
उस कनकमयं यावत् मस्तक में छिद्रवाली प्रतिमा में एक २ कवल आहार का डालने मे दुर्गंध उत्पन्न हुई. जैसे मृन सर्प का शरीर, मृत गाय का शरीर, मृत मनुष्य का शरीर मंड जान से जसे दुर्गंध पैदा होती है. इस भी अधिक तर अनिष्ट व अमनोज्ञ दर्गंध उत्पन्न हुई ॥ ४१ ॥ अब यहां से छ राजाओं का अधिकार चलत है. जा काल उस समय में कौशल नाम का ज पद (देश) था उस में साकेतपुर नगर था, उस नगर की ईशानकून में एक व नागकर देवता का देवालय था, वह देवता मत्य, सत्य वचन
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** श्रीमल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन
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