Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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कथाकथ
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अमिएस सिएस झग्गेषु डुप्पत्रः इसुत्तरेषु जइतें मध्यम उ सुगहिएषु गवराम महया उकटु मोडणाम जान रवेण पक्ष्खभय महारु मुद्दल भूमेइणी करमागा एगर्दिस जब जियगान व दरुढ ॥ ५६ ॥ ततः परम माग कम शह हमो ! अत्थमिद्धओ उट्टियाइ कलालाइ पडिहाई सब गवई जत्ती पुस्मोविजओ महतो अकाली तमा पुरुषमाणएवं बक्क मुदाहरिए हट्ट तुट्ठे कुछ कन्नधरा गभिज गंजत्ता नवा वाणियगया समुद्रयान की पूजा की, जहाज चलने के सड के बडे चटुओं यथा योग्य स्थान गग्यंजकर रख, वे ध्वजा के अग्रभाग ऊंच किये तु पुरुष तूरी आदेवात्र बजाए. फार श्रेष्ठ शक होने पर हाजनो की आज्ञा लेकर ड २ नाद सहित क्षोभित हुआ महा मंद्र मान पृथ्वी को क्षेम करते हुए एक विश में यत् णिकों नाव रूढ हुए || १६ || भोजक भार दे बीज पल वचने या किथ कि अो सब को ! तु को अर्थ सिद्धि हो, तुम्ह आग हैं तुम्हरा शव है, वाहनारूढ होने वा पत्राला होने से कार्य की सिद्ध करनेवाला है. इस तरह भट चरणों के मंग सरस हृा हए और निक दोनों ब ज ए चलनवाल
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