Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सृत्र
अर्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
वारं तं गावं गच्छ पुण्णमुहि बंधणे हिंती मुचेति ॥ ५७ ॥ ततसा पावर farara समाहर्या ऊसियसियापसिया वितत पक्वाइब गरुल जुबती गंगासलिल तिक्ख सांयवेगेहिं मंबज्झमाणी २ उम्मीतरंगमाला सहस्साति }: : समतित्यमाणी २ कइवएहिं अहोरचेहि लवणसमुहं अणंगाई जोयण साई उगाढा ॥ ५८ ॥ ततेण तेलि अहरनग्ग पामक्खिणं सजुत्ताण वणियगाणं लवण समुदं अनगाई जायणसयाई उगाढाणं समाजाणं बहुई उपपातिय सयाई पाउन्भूयातितं जहा - अकाले गजिते, अकाले विज्जुए, अकालेथणियम हूँ, अभिक्खणं २ अगासे देवयाओणचंति एगंचणं महाविसायरूपं पासति, ताल पुण्यमुत्री बंधन से मुक्त की ।। ५७ ।। अब बंधन मे मुक्त हुई वह नावा पवन की मात्रल्यता मे घेराई हुई ऊंचा श्वन वस्त्र का मढवाली, गरुड की स्त्री पक्षीनी के पांख समान, गंगा नदी के पनी का क्षण प्रवाह में भी क्षोभ नहीं पाती हुई, पानी के छोटे बड़े बहुत तरंगों को उलंघन हुई कितने दिनों में लवण में अनक सो योजन गई || ५८ ॥ उम अरहक प्रमुख हाण के व्यापारयों को लवण समुद्र अनेक सो योजन- गये पीछे एक बड़ा उत्पात प्रगट हुन मो कहते हैं. अकाल में गर्जना हुई, अकाल में विद्युत हुई, अकाल में स्तनित शब्द होने लगा और देवताओं आकाश में बारंबार नृत्य करने लगे. इतने में एक बडा पिशाचका रूप देखा. उस की जंघाओं तालवृक्ष जैसी थी, उस के दोनों हाथ अलश में
ममद्र
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कादर लाला सुखदेवसहायजी ज्या
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