Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
www.
चष्टाङ्ग यात्र
म
सब
पार्टी
गये थे, उन का रूप वर्ष, कजल, अथवा महिष समान अथवा गंभीर कला पानी से भरा हुवा मेघ श्याम वर्णराला था, उस क ओष्ट लम्बे थे, उस के दांतों मुख मे बाहिर निकले थे, विस्तारवाले उसने दो जिओं निकाली थी, दोनों तरफ के कपोल मुख में बैठ गये थे, उस की नामिका हुई थी, उस की दोनों भ्रमरों विकारवंत, भय उत्पन्न करे वैसे व अती ही स्त्र थे, कान खजूबूत के रंग समान जयंत उस की आखों थी. उस का वक्षःस्थल भय उत्पन्न करनेवाला विशाल वस्ती, उनका हृदय बहुत चौडा था, उस की दोनों कुक्षिओं बहुत लम्बी थी, उन के गात्रों नीचे पडवाले प्रचलित होने से शिला भूर हुए थे, ऐना वह आकाश को अस्फलता हुवा, सन्मुख आकर † पकडत हुत्रा, सन्मुख गजर करता हुआ, बहुत अट्टहास्य करता हुआ, और नीलोत्पल कमल समान,
जय गया, वहाहि मिलि मुमग महिस काल गंभरिय मेहवन लंबाई, निग्गयग्ग देत निखालि जमलजुयलजीहं आउसिय वयण गंडदसं चीण चविटु नासिकं, भिमहिं खजोयगदित्त चक्खुरागं उत्तः सगं विसाल वत्थं कुछ पलबकुछें, पहसिय पयलिय पडियगत्तं, पणश्च्चमाणं अप्फोडत. अमिवगतं अभिगर्जतं बहुसो २ अट्टहासोत्रिणिमु नील ग
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
* श्री महानायकी का आठवा अध्ययन +
३४१
www.jainelibrary.org