Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्टांग हाताधर्मकथा का श्यप तस्कर ...
मला णामंठयेइ ॥ जहा महाबले जाव परिवाड्डिया, सावडती॥३५॥भगवती देवलोयच्या अजोवम सरीरा · दासीदास परिवुडा परिकिन्ना पीढमहर्हि, अमिय सिरया, सनयाणा, बिंघोडी, धवलदतपतीया घरकमलकोमलंगी, फुल्लुप्पलगंधणीमामा, ॥ ३६ ॥ ततेणं सा मल्ली विदेहरायावरकण्णा उम्मुक्क बालभव जाव रूण जावणणय,लावण्णणय, अतीव २ उकिट्रा उक्विटसरीराजायायावि होत्था॥३७॥ तएणं
सामल्ली विदहरायवर का देण. वाससये जाया त छपिरायाणा विउलेणं उहिणा आभोए शैया मोने का देहद हुवा जिम से इस बालिका का नाम मल्ली होवे. वह महाबलः कुपर 3. ॥ ३६॥ भगवती मल्ली देवलोक में से चरकर अने से उन का शररी अनुपम था, दाम दासियों के परिवार से सदैव परवरी हुई थ, मित्र स्वजनो में सर्वाधिक देखाती थी, अनिसमान
नक के बाल काल थे, नयन विकसिम प्रकाशमान थे, ५का गोलह के फल सान अपरोष्ट थे, व दांत की पक्तओं थी, श्रेष्ट कमल और कोलांगी थी और प्रफल्लन गंध जैसा निश्च स था ॥ ३६॥ वह पल्ली ए की विदेह राजवर कन्पा बाल भाव से मुक्त होकर यावत् का योपन लावण्य को ताप हुई.
और उसका शरीर आती है। उत्कृष्ट देदीप्यमान दीखने लगा॥३॥मबह विदेह राजा की प्रधान न्य 'कुरुप की ई तब पाने पूर्व के मित्र छ ही राजा को अपने विपुल अनधि ज्ञान मेदेखीईई'
48 श्रीमल्ल नथनी का आठवा अध्यन HD
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