Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
सन्निहिया वाणमतरादेवा खियामेव जलय थलय जाब तडवण्ण मल्लं कुंभग्गसोय भरागसोय कुंभगस्सरण्गो भवणंसि साहरंति; एगंच महं सिरि दामगंड जाव गधंद्धणिमुयंत उघणेति ॥ ततेणं सा पभावतिदेवी जलय थलय जाब मलेणं डोहलं विर्णेति ॥ ३१ ॥ ततेनं सा पभावतिदेवी पसत्थदोहल जाव विहरइ ॥ ३२॥ ततेणं सापभावतिदेवी मासा बहुपडिपुण्गाणं अडट्टमाणशतिदियाण जेसे हेमंताणं पढमे मासे hara मग्गसिर सुद्धं तस्वणं मगसिरसुद्धस्स एक्कार सीए - दिवसेणं वरत्तकालसमयंसि अस्मिणीएणक्खत्तणं जांगमुवागएणं उच्चट्ठाण जात्र मुइय पक्की लिए आरोयारायं
पुव्रता
जण सु
देवीने शीघ्रमेव कुंभराजा के भान में जल व स्थल में उत्पन्न हुने पांचों वर्णों के पुष्पों का साहरन किया और एक बडा पुष्प का गेंद यावत् गंध फळे तसा लाये. वह प्रभावती देवीने उन जलस्थल से उत्पन्न हुए पुष्प दि सं यावत् दांहृद पूर्ण किया. ॥ ३१ ॥ वह प्रभावतीदेवी प्रसस्त दोहद वाली यावत् विरने लगी. ॥ ३२ ॥ अब प्रभावती देवीको नवमास प्रतिपूर्ण हुवे और उपर साढीसात रात्रि दिन होते. ( हेमत ऋतु के प्रथम मास में दूसरे पक्ष में अर्थात् मृगशर शुदी एकादशी में पहिली रात्रि पूर्ण हुए पीछे. अश्विनी नक्षत्र में ऊंचे स्थान ग्रहों प्राप्त होने पर यावत् प्रमुदित व क्रीडा वाले लोकों होवे ऐसा देश
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* रोहिणी का सातवा अध्ययन
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