Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मददक साबनधनागमान श्री अमालका
हत्थिखंध वग्गए मकरंटमल्लदामेण छत्तेणं धारिजमाणेए सेयवर चामराहि' महया हयगयरह जाह महया भडचडगर पहकर सागेयं णगरं मज्झं मरझणं निग्गच्छइ निगच्छइत्ता जेणेव नागघरए तेणव उवागच्छइ २ त्ता हात्थरखंधाओ पञ्चायहात २ त्ता आलए पणाम करेंति २ ता पुष्फमंडव अणुपविमति २ ता पामति तं एगमहं भिरिदामगंड पामइ २ त्ता ॥ ४९ ॥ ततेणं पडिबुद्धिरःया तं मिग्दि मगडं सुचिरं काल निरिक्खइ२त्ता तमि मिरिदामंगडंसि जाइय विम्हये सु. बाई आमच्चं एव वयाम-तमेण देवणप्पिया ! मम दाचेण बहुणि गानागरणगर जाव सनिसाइ आहिंडास, बहुणं रायईसर तलवर ईसर जाव गहाति अणुपविमइ, था पर सार होकर कोरंट वृक्ष के पुष्प की माल ओं का छत्र धारणकराना वेत च पर मारिन हय, गन, योपा व वडे २ मुभट. चेटक, महिन माकतपूर नगर की बीच में हाने हुए ३ गघा को पास गय हाथी पर नच ना कर नागपनिमा को दख प्रणाम किया, फीर पुष्प
प्रश करा. या एक बडा पुष्त की ल का दंड खा ॥ ४ ॥ प्रतिबद्ध राना उस श्री. दाम दंड को बहुत क लक स्थिर दृष्टि से दखार विस्मित हुआ और सुबुद्ध प्रधान को बोलाकर छा कि अहो देवान प्रेर! मेरे आदेश से दून तर के तुप बह ग्राम नगर यात् सनपश में गये है।
प्रकाशकामासादर लाला मखममहाराजा यायप्रसदाजा.
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