Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्ठ अहाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंथ
' सल्लवेरमणेणं अस्थि सोही जहावि तस्स रुहिरकयस्स वस्थरस जाव सुद्धेणं वारिणा पक्स्वालिजमाणस्स अत्थि सोही ॥४३॥ तस्थणं से सदसणे संबुद्धे थायापुत्तं वंदति गमंसति २ त्ता एवं क्यासी-इच्छामिणं मंते ! धम्मं सोचा नाणित्तते जात्र समणो वासएजाते ॥ अभिगय जीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे विहरति ॥ ४४ ॥ तनेणं तस्स सुयस्स परिवायगस्स इमीसे कहाते लहटुस्स समणास्स अयमयरूवे जाव समुप्पजेत्था-एवं स्खल मुम्मोण सोय थम्म विष्पजहाय, विणयमूलं धम्मं पाडवन्ने
त सेयं खलु मम सुंदसणस्स दिलि वामेत्तए पुणरवि सोयमूलए धम्मे आघवेत्तते त्तिकटु, यायत् मिथ्या दर्शन शल्य से निवर्तने से युद्ध होते हैं ॥ ४३ ॥ इस तरह उपदेश होने से सुदर्शन को ज्ञान हुचा और थावर्चा पुत्र को बंदना नमस्कार कर ऐसे बोले कि अहो भगवन् ! मैंने आपका धर्म श्रवणं किया यावत् वह श्रमणोपासक हवा. और जीवा जीव का सरूप जानता विचरने लगा ॥ ४४ ॥ उम भुक परिव्रजक को इस बात का मान होने से ऐसा विचार पुना कि सुदर्शनने आप। शूचिमूल धर्म छेडकर विनय मूल धर्म अंगीकार किया है. इस से मु.र्शन का विनय मूल धर्म का वमन कराके पन: शचि मूल धर्म अंगीकार करना मुझे श्रेय है.
शेलग राजषि का पांचवा अध्ययन 424
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