Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
षष्ठ ज्ञानार्मकथा का प्रय-अतबंध 42
कोडबिय पुरिसा तच्चसि वासरित्तसि महावुट्टिकायंसि नि इयंसि बहवे केदारे सुपरिवावेजा जाव लुणंति २ त्ता संवहति २ ता खलयं करेंति २ त्तामलते जाव बहवे कुंभ जाया।ततेणं ते कं डुपिया साली कोट्ठागारंसि पक्खियंति जाब विहरीत, ॥१६॥ चउत्थवासारत्ते यहवे कुभसया जाता ॥ १७ ॥ ततेणं तस्स धणरस पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाण स पुब्बरत्तावरत्त कालसमयसि इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था एवं खलु मएइओ अतीते पचमे संवच्छरे चउण्हं अण्हाणं परिक्खणट्टयाए ते पंच २ सालिअक्खया हत्थे दिन्ना तं सेयं खलु मम कलंजाब जलंतेचसालीअक्खाए परिजा तत्तए एवं जाणामि ताव क्य र आये प.वत् काटकर इस का खला बनाया. उन में पसल कर स्वच्छ बनाकर बहुत कुंभ भ लिये: उस की रक्षा करते हुने कौटुम्बक पुरुषों विचरने लगे ॥ १६ ॥ चौथी वर्षा ऋतु में बहुत सेंकडो कुंभ शाली के हुवे ॥ १७ ॥ पांचवे वर्ष में धन्ना सार्थवाह को रात्रि में विचार करते एसा अध्य दसाय हुना कि आज स पांच वर्ष पर चार पत्र मधुओं की परीक्षा करने के लिये मैंने पांच २ शालि के दाने दिये थे इसे कल प्रभात होते यावत इम की चौकसाइ करना मुझ श्रेय है. इन से मैं जान - सकू कि सिने किस तरह क्षण दिया, किसन किस त इ गोपन किरा व किसने किस तरह वृद्धि की. ऐसा
viगहिणीका सातवा- अध्ययन
8
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org