Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
पष्टङ्ग ज्ञाता धर्मकथा की प्रथम श्रतवन्य 48
वयंसए पाउन्भूए पासइ २ त्ता हटे, तुटे कोडंघिय पुरिसे सहावेइ २ त्ता एवं वय सी गच्छहणं तुब्भे देवाणु प्पिया ! बलभद्दकुमारस्म महयारायाभिसेणं अभिसंचेह, तेवि तहब जाव बलभदृकुमारं अभिसिंचति ॥ १४ ॥ तएणं से महव्वलेराया बलभद्दकुमारं आपुच्छइ ॥ १५ ॥ तएणं महव्वल पामोक्खा छप्पियबालवयंसयाए सडिं, पुरिस सहस्सबाहिणी दुरूढा, बीयसोयाए रायहाणीए' मम्झमझेणं णिगच्छइ २ त्ता जेणेव इंदकभेउजाणे जेगव, थेराभगवंतो तेणेव उवागच्छइ २ ता, तेवि सयमेव पंचमुट्ठियलोयं करेइ जाव पव्वइए, एकारस्सअंगाई अहिजित्ता,
राहिणी कासातवा अध्यय
वह बहुन हर्षित हुए और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर ऐसा बोले कि अहो देवाणुप्रिया ! बलभद्र कुमार के लिये बहुत बड राज्यभिषक करो उनों ने भी वैसेही राज्याभिषेक किया ॥ १४ ॥ महाराजा ने बरपद कार की दिक्षा के लिये आज्ञा ली ॥ १५ महाबलराजा ने छ बालमित्रों सहित 'हस्र परुष वाहिने शिविका में बैठकर बीतशो का राज्यधानी की मध्य बीच में होते हुए इन्द्रका उद्यान में स्थविर भगवंत की पाम आये और वहां पर उोंने सा ने सय मेव पंच मुष्टिक लोच क्रिया या 'त् प्रवनि । हुए अग्यारह अंग का अध्ययन किया और बहुत चतुर्थ अष्टभक्त यावन् तप व संयम .
»
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org