Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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* अमुवाद का बाह्मचारी मुनि श्री अमोलक का
सालिअक्खए सगड सागडेणं णिजाएइ पसति २त्ता हतढे जाव पडिच्छइ, तरसंवमित्त जाति चउण्हय सुण्हाण कुलघरस्त पुरओ रोहिणीयं सुण्ह तस्स कुलघरस्म बहुकजसुय जाव रहस्सु य अपुछणिजं जाव वड्डावियं, पमाणभूतं दुवेइ ।। २६ ॥ एवामेव समणाउसो ! जाव पंच महन्वयाति संबड्डियाई भवंति, सेणं इह भवे चेव बहुणं
समणाणं बहुणं समणीण बहुगं सावयाणं बहुणं सावियाणं जाव वीतीवइस्संति, . जहा सा राहिणीया ॥ २७ ॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं भगवया महावीरेणं
जावं संपत्तेणं सत्तमस्स णायज्झयणस्प्त अयमढे पण्णत्ते, तिबेमि ॥ सत्तम णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ ७ ॥ उपनय गाहा-जहा सेट्ठी तहा गुरुणो, जहाणाइजणो- .
तहा समणसंघो ॥ जहा बहुया तहा भवा, जहा सालिकणा तहा वयाइ ॥ १ ॥ उन सब मित्र ज्ञातिय चार पुत्रवधुओं व कलयर के वर्ग मन्मुख रोहिणीको कुल के बहन कार्यों में यावत् रहस्य * कायों में पूछकर काम करने स्थापन की वं घर में सब से बडी बनाइ. ॥ २६ ॥ अहो आयुष्यवंत जैसे रोहिणीशाली के पांच दाने को वृद्धि करने में प्रतिष्टा पाह ही जो कोई साधु साध्वी पांच महावर, अंगीकार कर इस मे संयम तप वृद्धि करेगे वे इस भर में बहुत साधु साध्वी श्रावक व श्राविकाओं में पूज्यनीय होंगे और परभव में भी अनंत संसार का उत्चर्ण करेंगे ॥ २७ ॥ अहो जम् ! श्रवण भगवंत
16शक-राजावतालामुखदवमहायजीवालाप्रसादजी.
अर्थ
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