Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ षष्ठङ्ग ज्ञाता धर्मकथा का-प्रथम श्रुतस्कंध 422+
जहा सा उझिया गामा, उज्झिय साली जहत्थ मभिदाणा ॥ पेसण कारितेणं, असंक्ख दक्खणीजाया ॥ २ ॥ तहा भव्वो जो काइ, संघसमक्ख गुरुवि दिण्णाई ॥ पडि वाजिउ समझई, महव्वयाइं महामोहा ॥ ३ ॥ सो इहचेव भवंमी, जणाण धिक्कार भायणं होइ ॥ परलोए दुहहतो, णाणा जोणी संचाइ ॥४॥ जहवा साभोगवई, जइत्तणामोय भुत्तसालिकणा ॥ पेसण विसेसाकारि, तणेण पत्तादुहं चव ॥ ५ ॥ तहाजो
महत्वयाई,, उव भुंजई जीवियति पालता ॥ आहाराइसु सत्तो, चतोसिव साहश्री महावीरस्वामी यावत् मक्ष संमतहवे उनोंने ज्ञाताधर्मकथा के मानवे अध्ययनका यह अर्थ कहा है. यह सातवा अध्ययन संपूर्ण हुवा।।७॥उपसंहार-धनः स र्थवाह समान गुरु,ज्ञातिजन जैसे श्राण संघ,बहु जैस भव्यसाधुओं शालिकण जैसे हा व्रत ॥१॥ जो शाली के दाने फेंकदेने से यथा नाम वाली उज्झिन प्रषण (दामी के कार्य करने से अत्यंत दुःखी हुइ॥३॥ वैसंही जो कोई भव्य साधुओं संघसन्मुख गुरुने दिये हुवे व्रतोंको अंगीकार कर भगंकरतेहैं वे इस भव में मनुष्या के धिक्कार को पात्र होते हैं और परलोक में दुःख से हणाये हुवे विविध / 4
कोरते हैं ॥ ४॥ अव जो शाके के द ने पापो से पार्थ नाममाली भोगनी श्रेण (ोई के) कार्य से दुःवी हुइ तैने ही जो साधु महात्रों का भक्षण करता है अर्थत् अ चरणरूा साधु का वेप मात्र रखना। सहै वह अनिी का (पेट भाई ) के लिये पालत हुरा अहर में आसक्त बनकर शिव सुख के साधन का
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रोहिणी का साथवा- अध्ययन 428
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