Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋ पेजी
इहभवेचैव बहुणं समणाणं बहुणं समणीणं बहुणं सावयाणं बहुणं साबियाणं अच्चणिजे जहा जाता रक्खितिया ॥ २४ ॥ रोहणियावि एवंचेव, णवरं तुम्भे तातो! ममसु बहुयं समडीसागडं दलाह जाणं अम्हं तुब्भं ते पंचसालिअक्खए पडिनिजएमि ॥ तते धन्नेसत्यवाहे रोहणीए एवं क्यासी कहणं तुमं मम पुत्ता! ते पंचसालि अक्खए सगड सागडेणं निजातिस्सासि ? ॥ ततेणं सा रोहिणी घण्णं सत्यवाहं एवं वयासी एवं खलु ताओ ! इओ तुम्भे पंचमेसंवच्छरे इमस्स मित्त जाव बहवे कुंभसया जाया । तेणेव कमेणं एवं खलु ताओ ! तुब्भेते पंचसाल अक्खए सगडि सागमाधु-साध्वी, श्राचक व श्राविकाओं में रक्षिता जैसे अर्चनीय व पूज्यनीय होते हैं ॥ २४ ॥ ऐसे ही रोहिणा का जनना. परंतु रोहिणीने कहा कि अहो तात ! मुझे बहुत गाडा गाडी दो जिस से मैं आपके पांच शाली के दाने ला हूं धन्ना सार्थवाह रोहिणी को कहने लगे कि अहो पुत्री ! मेरे पांच शाली के दाने कैसे गाडा गाडी में लावांगे ! तब रोहिणाने उत्तर दिया कि अहो तात ! आज से पांचवे वर्ष में इन सब की सन्मुख मुझे पांच शाली के दाने दिये थे. उसे लेकर मैंने मेरे पितृगृह के कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और उसे खेलने में डालकर बढाने का कहा यावत् अब वे सेंकडों कुंभ प्रमाण शाली हुवे हैं.
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● प्रकाशक- राजांबदुर लाला सुखदेवसहायकी ब्वालाप्रसादजी
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