Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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। मनुवादक-ालनमसरीमुनि श्री अको के ऋषिजी १
काविहंवा सारक्सियावा संगोविरास, संघड्डिय वा, ज व तिकटु, एवं संरहे३ २ चा कल जाव जलते विपुलं असणं पाणं स्वाइयं साइम मित्त "ति च उण्डय सुण्हाणं कुलघर नाव सम्माणित्ता तस्सेक्य मित्तणाइ च उण्हय साहाणं पुरता जेट्ठ उझियं सवैति २ त्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं पुत्ता । इलो अनीते पंचमिसंबच्छरे इमरनमित्त पउण्हय सुगहाणं कुलघरयस्स पुरतो तव हत्थंसि पंचमालिक्खए दलथामि, जयाणं अहं पुत्ता एएसालिअक्खाए जाएजा तगाणं तुम मम इमे पच वाली अक्खए
पडि नजाएसि, तिकटु सेणूणं पूत्त ! अटे सम? ?, हंता अत्थि ॥ तण्णं तुमं पुत्ता विचार करके दूसरे दिन प्रभ तहते अशनादि चारों आहार बनाकर मित्र,जाति, वजन, चार पुत्रवधुनों व कुलघर वर्ग का HEIR मन्मान कर उन सब की सम्पुरख पहिले अष्ट पुत्र की ग्धु को युलदाई. और उम को ऐमा बोकि अहे पुत्री ! आज से पांचवे वर्ष में इन पित्र ज्ञाति चा पुत्र वधुओं व कुलपा वर्ग की सनाव तुम्हारे हाथ में अखंडित पांच शाली के दाने दिये थे और कहा था कि ये दाने जब मैं मांगू तब मुझे पंछ देना. अहो पी !! यह बात मत्य है? उसने कहा-हां यह बाद सत्य है. तब श्वशुरने कहा कि श्रह पुत्र ! तब मुझ मेरे दिये हुवे अखंडे । शाली के दाने पाछे दे दो. तब अझया पन्ना सार्थवाह का
पशक-राजाबहादुर लाछा सुखवा प्रजी व्यालाप्रमादजी .
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