Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भनाबदक पाल बह्मचारी मुनि श्री भोळक ऋषिमा
काकिहवा सारखइवा,काकिहवा,संगोवइवा,संवड्डेइवा।।एवं सपेहेइ२त्ता कलं जाव मित्तणाति चउण्हय सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेइरशाविपुलं असणं पाणंखाइमं साइमंउवक्खडा वेइ २त्ता ततो पछाण्हाया भोयण मंडवंसि सुहासण सण्णिसाण्णे तं मितणाति चउण्ड्य मुण्डाणं कुलघरवग्गेणं सद्धिं तं विपुलं असणं जाव सक्कारेति सम्माणेति २त्ता तस्सेव मित्तणाति चउण्डय सुण्हाणं कुलघरवग्गरसय पुरतो पंचसालि अक्खए गेण्ड २ त्ता जेट्ठसुण्डं-उज्झिइतं सहाति रत्ता एवं वयासी-तुमेचणं पुत्ता! महत्था तो इमे पंचसालि
अक्खएगिण्हाहि आणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि, जयाणं अहं पुत्ता! रखती है, कौन किस तरह गौपती है व कौन किस तरह बृद्धि करती है. ऐसा विचार कर दूसरे दिन प्रभात होते यावत् मित्र बाति, चार वधुओ कुलघर का वर्ग को बोलाकर विपुल अशनादि बनवायें
तत्पश्चात स्नान किया फीर भोजन मंडप में मुखासनपर मित्र शाति चार वधुभो । कुलघरवर्ग की Eसाथ विपुल अशनादि से यावत् सत्कार सन्मान किया. और उन सब की सन्मुख पांच अंखड शाली के
दाने लेकर ज्येष्ठा पुत्रवधू उज्झिया को बोलाइ. बोलाकर ऐसा कहा कि महो पुत्री ! तुम यह महा अर्थ +वाले पांच शाली के दाने ग्रहण करो. और उस का रक्षण यावत् गोप करते हुए विचरते रहो और जब में इन
प्रकायाक राजाबहादुर लाला मुखदेवसछायजी व्यकापसादरी
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