Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48+ षष्टांग ज्ञाताधर्षकथा का प्रथम श्रुउस्कन्ध 18
तम इमं पंचसालिअक्खए जाएजा तयाणं तुमं मम इमे पंचसालि अक्खए पडिदेजासि तिकटु, सुण्हाते हत्थे दलयति २त्ता पडिविसजेति ॥५॥ ततेणं सा उज्झिया धण्णस्स तहत्तिएयमटुं पडिसुणेति २ त्ता धणरस सत्थवाहस्स हत्थातो ते पंचसालि अक्खए गेण्हाति २ ता एगंतमवक्कमइ एगमवकमिया, इमयारूवे अज्झथिए ४, एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि बहवे पल्लासालीणं पडि पुन्ने चिटुंति तं जयाणं ममताउ इमे पंचसालिअक्खए जाएसाति तयाणं अहं पलंतरातो अमपंचसालिअक्खए गहाय दाहामि तिकटु एवं संपेहेति, एवं संपेहेत्ता, तेपंचसालिअक्खए एगतेएडेइ २त्ता
सकम्म संजुत्ता जाययाविहोत्था ॥ ६ ॥ एवं भोगवतियावि, णवरं सा छोल्लेति २त्ता दानों को मांगू तब मुझे पीण देना. ऐसा कह कर उक्त पांचों शालिके दाने उस ज्येष्टा पुत्रवधू के हाथ में रखे और उसे विभर्जित की ॥ ५ ॥ उस उज्झिताने धना सार्थवाह का वचन स्वीकृन किया. धन्ना सार्थवाह के हाथ में से उक्त दाने लेकर एकांत में गई. और ऐसा विचार करने लगी की मेरे पिताजी ( श्वशुर ) के कोष्टागार में बहुत पल्लों शाळी के भरे हुए हैं. इस से जब वह मंगेगे तब में इस कोष्ठागार
से शाली के अखंडित पांच दाने लेकर देखेगा. ऐसा विचारकर पांचों पालि के दाने एकांत में गलरिये और वह अपने कार्य में प्रबुन हुई. ॥ ६॥ दूमरी भोगपती को वोलाकर वैसे कहा और वह पांचों दाने
रोहिगी का सातवा अध्ययन 488
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