Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी
अणुगिलइ २त्ता सकम्म संजुत्ता जायायाविहोत्था॥७॥एवं रक्खियावि गवरं पंचसालि अक्खए गेणहइ२त्ता इमेयारूवे अज्झथिए,एवं स्खलु ममं ताओ इमस्स मित्तणाति चउण्डय सुण्हाणं कुलघर वग्गरस पुरतो सदावेसारत्ता एवं वयासी-तुमणं पुत्ताममहत्थातो जाब पडिनिजाए जासित्तिकटु,मम हत्थंसि पंचसालिमक्खएं दलयति तं भवियध्वमेत्थ कारणेणं तिकटु, एवं संपहेइ २ ता ते पंचसालिअक्खए सुद्धे वत्थेबंधति २ त्ता रयण
करंडियाए पक्खेवति २ त्ता मज्जुसाए पक्विवइ २ त्ता उसीसामूलेट्ठावेइ २ त्ता लेकर एकांत नइ और उसने उस ही विचार से पांचों दाने के उपर से चिलटे नीकालकर निगर(खा) गई और अपने कार्य में प्रवृत्त हुई. ॥ ७॥ ऐसे ही रक्षित नाम की तीसरी पुत्रवधू का मानना. वह उसे
गइ और ऐमा अध्यवसाय हुग कि मेरे पारने मब मित्र ज्ञाति, चारवधुभो व कुलघर वर्ग की सन्मुख बोलाकर ऐसे बोले हैं कि अहो पुत्री ! में तुप को यह शाली के दाने देताहूं यावत् जब में मांगु तब पीछे देना. ऐसा कह कर मेरे हाय में ये पांच दाने रखे हैं। इस से इस में कुच्छ कारन होना चाहिये. इस से उसमे पांचों शाली के दानों को अद वस्त्र में बांध दिये. उस रत्न के करंडिये में रखा. स करंडियेको एक संदूक रखा. उम संदूक को ओसीसों नीचे रस्त्री और दोनों काल संध्या को उसकी
• प्रकाशक राजबहादुर लाला मुखदवसहायी चालाप्रसदजी .
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