Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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० मा
र अनुवादक पालनाचारीमान श्री अमोलक ऋषीजी
बाह २ ता दोच्चपि तच्चपि उक्खय णिक्खए करहइ २. ना वाडिंपरिक्खेवं करहा। २ ता समागंसि संरक्खमाणा संगावेमाणा अणुपुर्ण संबड्वेह ॥ ९ ॥ तण कोटुम्बिया रोहिणीए एयमटुं पडिसुणेति २त्ता तेचमालिअक्खर गण्हति २त्ता अणपुषण सारखंति संगोति विहरति॥१॥ततेण ते कोटुबिधा पढम पाउसासे महावुष्टिकायसि नितियंसि समाणसि खुड्डयं केदारं सुपरिकम्मियं करेंति २त्ता ते. पंचप्सालि अखए ठवंति २त्ता दोच्चंपि तच्चपि उवक्खय निक्खए करेति रत्ता वाडि परिक्खेवं करिति २ त्ता अणुपुर्वणं सारक्खमाणा संगोवमणा संबड्डेमाणा विहरंति॥११॥ततेणं से सालीअक्खए
अणुपुवेणं सारक्खिजमाणा संगोविजमाणा संवटिजमाणा सालीजाया किण्हा किण्हो अन्य स्थान रोपना, उन क्यारे को चोतरफ बाढ स्नाना, उम की अच्छी तरह रक्षा करना यावत् वृद्धि करना ॥ ९ ॥ कौटुम्विक पुरुषोंने उस के वचन मान्य किये और उन पांचों दानों को लेकर उन कथनानुसार रक्षा करते हुरे विचरने लगे ॥ १० ॥ जर वर्षाकाल में प्रथम महा नष्ट हुई. ता कौटु में पुरुषों ने तृणा दे निकालकर एक छोटा क्यारा बनाया, उस में पांचों शाली के दान डाल दिये. उसे वहां से निकालकर दूसरी वक्त उस का रोप किया. और उस का रक्षण करत वे कृष्ण, कृष्णाभास
Auranmaa
राजा दुर लालासुखदवसहायणी नाला प्रसादजी.
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