Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-कालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एगमहं रुहिरकयवत्थं रुहिरेण चेव धोएज्जा, ततेणं सुदंसणा तस्स रुहिर कयरस वत्थस्स रुहिरेण चेव पक्खालि जमाणस्स अस्थि सोही ? णो तिणटुं सम? ॥ एवामेव सुदंसणा तुम्भंपि पाणाइवाएणं जाय मिच्छादसणसल्लेणं णत्थिही जहा सस्स रुहिरकयवत्थस्स रुहिरेणंचेव पक्खालिजमाणस्स णत्थि साही ॥ सुदैसणा से जहा णामए केइ पुरिसे एगं महं रुहिर कयवत्थं सजियखारेणं अणुलिंपइ २ त्ता पयणं अरुहेति उहं गाहेइ २ ता तओपच्छासुद्धणं वारिणा धोवेज सेणणं सुदंरुणा! तरस रुहिरकयवस्थरस सजियाखारेणं अणुलित्तस्स पयणं अरुहियरस उण्डं गाहियरस सद्धेणं बारिणा पक्खीलज्जमाणस्स सोही भवति?
हंता भवति ॥ एवामेव सुदंसणा ! अम्हंपि पाणाइवाय वेरमणेणं जाव मिच्छादसण धोने से क्या उस वस्त्र की शुद्धि होवे ? यह अर्थ योग्य नहीं है, अर्थात् इस तरह शुद्धि नहीं होती है। जैस रुधिरवाला वस्त्र की शुद्धि रुधिर में धोने से नहीं होती है वैसे ही तम्हारे मत में प्राणातिपात यावत् मिथ्या दर्शन शल्य मे आत्मा की शुद्ध नहीं होती है. परंतु अहो सुदर्शन ! कोई पुरुष रुधिर से भरा हुवा क्व क्षारादि से लिप्त करे, चूले पर चढाकर ऊष्ण करे, फीर शुद्ध पानी से धाये तो उस वस्त्र की क्या बुद्धि होती है ? हां! इस तरह करने से उस की शुद्धि होती हैं. जैसे रुधिर मय बस्त्र की क्षारादि के लेपन कर शुद्ध पानी से धोने से शुद्धि होती है वैसे ही हम भी माणातिपात से निवर्तने से
प्रकाशक राजाबहादुर लालासुखदवसहायजी ज्वाला प्रसादजी.
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