Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अज्झोव वने पास थे पासत्थविहारी; एवं उसने कुसीले पमचे संसते संसत विहारी, उउवलद्ध पीढ फलग सेज्जा संथारए पमत्तेवावि विहरइ, नो संचाएइ फासुएसणिज्जं पीढ फलग पञ्चपिणित्ता मंडुयंचरायं आपुछेत्ता बहिया जणवय विहारं विश्व ॥ ४ ॥ ततेणंतेसिपंथग वज्जाणं पचण्ह अणगारसयाणं अन्नयाकयाइ एगयओसहियाणं जाव पुध्वरत्तावरप्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणेणं अयमंयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जेत्था, एवं खलु सेलएरायरिसी चइत्ता रजं जाब पव्वतिए जाव बिहरितए, नो खलु कप्पइ देवाणुपिया ! समणाणं जाव पमत्ताणं विहरिसए, तं प्रतिक्रमणादि क्रिया रहित स्थिल बनकर विचरने वाले हुवे इस तरह पार्श्वस्थ, कुशील, प्रमत्त संसक्त { बनकर जो पीढ फलगादि प्राप्त हुए थे उस में प्रमादि बने विचरने लगे. परंतु फ्राक एषणिक पीढ ( फलागादि को पीछेदिये नहीं व मंडक राजा को पुछकर बाहिर जन प्रदेश में विचरने नहीं लगे ॥ ७४ ॥ अब पंथक छोडकर शेष ४९९ साधुओंने एकत्रित होकर यावत् अर्ध रात्रि व्यतीत होते धर्म जागरणा करते ऐसा विचार किया कि शेलग राजर्षि राज्य छोडकर नवजित हुए हैं परंतु विपुल अशन, पान, स्वादिम स्वादिम व मद्यपान में मूच्छित हुए हैं और विहार करने में समर्थ नहीं हैं. अहो देवानुप्रिय ! श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रमादिपने विचरना नहीं कल्पता है. इस से अहो देवानुप्रिय !
कल शेलगराजर्षि
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• प्रकाशक राजाबहादुर लाळा सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी ●
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