Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
या सुणा तुमं मम एजमाणं पासिता जाव नो वंदसि तं कस्सणं तुमे सुदंसणा इमेयरूत्रे विणयमुले धम्मे पडणे ॥ ४५ ॥ तरणं सुदंसणे सुरणं परिव्द्रायणं एवं वृत्तंसमाणे आसागातो अब्भुट्ठेइ त्ता २ करयल सुयपरिवायगं, एवं बयासी एवं खलु देवाणुपिया ! अरहतो अरिट्ठनेमिरुस अंतेवासी थावच्चापुत्तणामं अणगारे जात्र हमागते, इह नीलासोए उज्जाणे विहरति, तस्सण अंतिए विजयमूले धम्मं पडिवन्ने, ॥ ४६ ॥ ततेणं से सुए परिव्वाय सुदंसणं एवं बयासी --तं गच्छामोणं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामो, इमाइचणं मुझे आता हुवा देखकर खडा होता था यावत् वंदन करता था परंतु अधुना मुझे आता हुआ देखकर यावत् दन नहीं करता है. तो अहो सुदर्शन क्या तैने विनय मूल धर्म अंगीकार किया है ॥ ४५ ॥ जत्र शुरु परिव्राजकने ऐसा कहा तब अपने आसन से उपस्थित हुवा और हाथ जोडकर शुक परिव्राजक को ऐसा बोला अहो देवानुप्रिय ! अरिहंत अरिष्ट नेमी के अंतेवासी थावच पुत्र नामके अणगार यहां आये हुत्रे हैं और यहां हो नीलाशोक उद्यान में विचर रहे हैं. उन की पास मैंने विनय मूल धर्म अंगीकार किया है || ४६ ॥ तंव शुरु परिव्राजक सुदर्शन को ऐना बोला कि अदर्शन
चल अपनन
षष्टांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
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4- शेलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन
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