Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4 अनुविदेक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
एयारूबाई अट्ठाई हेऊई पसिनाइ कारणाई बागरणाई पुच्छ, मो, तं जइणं मेसे इयाइ अट्ठाइ जात्र वागरेति तेआणं अहं वंदामि णमंसामि, अहमे से इमाइ अटू इं जब नो से वागरेइ ताणं अहं एतसिं चेत्र अहिं हेऊ हैं निप्पट्ट पसिण वागरणं करिस्समि ॥ ४७ ॥ ततेणं से सुए परिव्वायगसहस्सेणं सुदंसणेणय सेट्टिणा सद्धिं जेणेव निलासाए उज्जाणे जेणेव थाना पुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ २ थावच्चा पुत्तं - एवं वयासी - जता ते मंते ! जवणिज्जं ते, अञ्वावपि ते, फासूयविहारपि ॥ ततेणं से थावच्चा पुत्ते सुएणं एवं वुत्ते समाणे सुर्यपरिव्वाययं एवं वयासी - नुया !
तेरे धर्माचार्य यावच पुत्र की पास जावे और उन को अर्थ, हेतु प्रश्न कारण व व्याकरण पूछेंगे. यदि वे मेरे इस प्रश्न का उत्तर देगे वा उन को वंदना, नमस्कार करूंगा. यदि वे मेरे प्रश्न यावत् व्याकरण का उत्तर नहीं देंगे तो मैं उन को अर्थ व हेतु से निरुत्तर प्रश्न रहित करूंगा ॥ ४७ ॥ अब वह शुक परिव्राजक अन्य हजारों परिवाजकों को लेकर सुदर्शन श्रेष्ठ की साथ नीलाशोक उद्यान में थावच पुत्र अनगार की पास आया और ऐसा बोला यहां भगवन् ! क्या तुम्हारे मत में यात्रा है ? यज्ञ हैं ? क्या { अव्यावाध है ? क्या फ्रासुक विहार है ? जब शुक परिवाजकने ऐसा कहा तव दिया कि अहो शुक ! हमारे मत
पुत्रने उत्तर यात्रा भी है, यज्ञ भी है, अव्यावा भी हैवमुक (वहार भी है.
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* नकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेव सायं ज्वाला मादजी ०
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