Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवं संपेहेइ २ त्ता परिवायग सहस्सेणं सहि जेणेव सोगंधिया णयरी जेणेव परिवायगा वसहे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवगच्छइत्ता, परिवायगा वसहसि भंडग निक्खेवं करेइ २ त्ता धाउरत्तवत्थपरिहिते पविरल परिब्बापा सहि संपरित्रुडे परिव्वायग वसहातो पडिनिक्खमइ २ त्ता सोगंधियाए णयरीए मझमझेणं जेणेव सुदंसणस्स गिहे जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता ततेणं से सुदंसणे तं सुयं एजमाणं पासति २ ता नो अब्भुटेइ, नो पञ्चुगच्छइ, नो आढाइ णोपरियाणाइ णो
वंदेइ, तुसिणीए संचिट्ठइ।।४७॥तत गं से सुए परिवायए सुदसणं अणुब्भुट्टियं पासित्ता __ एवं क्यासी-तुमणं सुदमणा अन्नया ममं एजमाणं पासित्ता अब्भट्ठोसि जाव दास,
मा पचार कर हजारों परिव्राजकों की साथ सौगंधि नगरी में जहां परिव्राजक की वसति थी माया. वहां अपने भंड पात्रादि रखकर गेरु के वस्त्र पहिन कर थोडे परिव्राजकों को साथ सौगंधिक नगरी के बीच में होता हुवा मुदर्शन के गृह आया. इस तरह शुभ परिव्राजक को आता हुवा देखकर में सुदर्शन शेठ खडे हुवे नहीं, उसकी सन्मुख गया नहीं, उनको आदर सत्कार किया नीं परंतु मौन रहा। तब वह शुक परिव्राजक सुदर्शन को इसतरह नहीं खड़ाहुवा देखकर ऐमा बोला कि अहो सुदर्शनातू अन्पदा :
.एकामक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहापजी ज्यालामवादजी.
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