Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
स
the
षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्षकथा का प्रथम श्रुतस्कंध,
दत्त पत्ते सत्थवाहदारए मयूरपोयगे उमुक्क जाव करेमाणे पासेत्ता हट्ट सुट्टे, 1 तेसि विपुलं जीवियारिहं पीतिदाणं जाव पडिविसजेति ॥ २५ ॥ ततेणं से मयूर पोपगे जिणदत्त पुत्तेणं .एगाएचपुडियाए कयाए समाणाए. गंगोला मंगसिरोधरे, . सेयावंगे. उत्तरिय पइन्नपश्खे उक्खित्त चंद कातिय कलावे केक्काइय सइय विमुच्चमाणे णञ्चइ ॥२६॥ ततेणं से जिणदत्तपुत्ते तेण मयूर पोयएणं चंपाए णयरीए सिंघाड जाव पहेसु सतिपहिय साहस्सिएहिय सयसाहस्सिएहिय पणिएहियजयं
करेमाणे विहग्इ ॥ २७ ॥ एवामेव समजाउसो ! जो अम्हं णिग्गंथोवा जिग्गंथिवा देखकर हृष्ट तुष्ट हुवा यावत् आजीविका के लिये प्रीतिदान देकर उसे विसर्जन किया ॥ २५ ॥ अब वह जिनदत्त पुत्र एक चिमटी बनावे उतने में ही वह मयूरी का बच्चा पुंछ का भाग विस्तारकर उसे मस्तकपर
आटोप करे. पूंछ का परिभंग कर शिर पर धारण कर फीरता हुवा ग्रीवा की व श्वेत पांव की शोभा Aबताता हुवा पांखों कंघी कर मयूर के सेंकडों कैकारव शब्द करता हुवा मृत्य करने लगा ॥ २६. अब* जिनदत्त पुत्र उस मयूरी के बच्चे से चंपा नगरी के शृंगाटक यावत् महा पथ में सेंकडों, हजारों व लखों व्य की होड करके जीतने लगा ॥ २७ ॥ अहा आयुष्यात श्रमणो * वैसे ही जो हमारे साधु सोची
मयूरी के अंडे का तीसरा अध्ययन 48
4
ANI
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org