Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
418+ पांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम-तस्कम्भ 448+
त्रिदिष्णाउ ॥ १७ ॥ तरणं कण्हवासुदेवे पावचा गात्रइणीए एवं क्यासो अत्याहिणं तुमं देवाणुपिया ! सुणिव्वुया वीसत्था, अहमं सयमेत्र थावथा पुत्तस्स दारगरस जिक्स्वमण सकारं करिस्तामि ॥ १८ ॥ ततेणं से कण्हवासुदेवे चाउरंगिणीए सेनाए विजयं इत्थिरयणं दुरूढे समाण जेणेव थावच्चाए गाहा बहणीए भवणे तेणेब उत्रागच्छइ २ सा थावचा पुत्तं एवं वयासी मानं तुमं देवाणुष्पिया ! मुंडे भविता पव्याहि मुबाहिणं देशणुप्पिया ! विउले माणुस्सर कामभोगे ममं बाहुच्छाया परिग्गहिए, केवलं देवाणुप्पियस्स अहं नो संचाएमि वाडकायं उवरिसेणं गच्छमिणं निवारिश्वए; अण्णेणं देवाणुप्पियस्स जं किंचि आबाईचा वादाहंवा उप्पा
दीक्षा के लिये छत्र, मुकुट, च. मर व बार्दिन देवों ॥ १७ ॥ तब कृष्ण वासुदेव बोके कि अहो देवानुमिये तुम यहाँ निर्मित बैठो में स्वयमेव थावच पुत्र का दीक्षा महोत्सव करूंगा. ॥ १८ ॥ फीर वह कृष्ण देव विग्य नामक गंधहस्तीवर आरूढ होकर थावर्षा गाथापतिनी को गृह गये और थावच पुत्र को एने बोलें, अहो देवानुप्रिय ! तुम मुंडित बनकर दीक्षा मत ग्रहण करो. परंतु मेरे माश्रय में रहकर पनष्य संबंधी विपुल काम भोगों भोगवो. तुम्हारे पर ऊपर से आता हुवा बाबुकाय का निवारण करने में ही में मात्र अशक्त हूं. इस सिवा अन्य किसी प्रकार की भाषा पीडा यदि तुम को होगी उम्र का वे
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488+- लग राजा का पांचवा अध्ययन 448+
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