Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अर्थ
** पहाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध 88
बेति २त्ता एवं वयासी जहा मेहस्स क्खिमणाभिसओ तहेव सीयापी हिं कलसेहि व्हावेइ २ चा तरणं से थावच्चापुत्तं सहस्स पुरुसेहिंसद्धिं सिवियाए दुरूढे जाव रखेणं बारावइनयरिं मज्झं मज्झेणं जेणेव अरहतो अरिट्ठने मिस्स छत्ताइछत्तं पडागातिपडागं पासंति २ चा विजाहर चारणे जाव पालितासी वियाओ पचोरुहति ॥ २५ ॥ ततेणं से कण्हेवासुदेवे थावचापुत्तं पुरतोकओ जेणेंत्र अरहा अरिट्ठनेमी सत्वं तचेत्र आभरणं थावचा गाहावइणी इंसलक्खणेणं पडगसाडगेणं आभरणमल्लालंकार पडिच्छति, हारवारिधार छिष्णमुत्ता लिपगासार्ति
जैसे मेघकुमार का दीक्षा महोत्सव हुवा था वैसे ही महोत्सव कराया. और १०८ सोने के कलश, १०८ {चांदि के कलश, १०८ रत्नों के कलश से स्नानकरा कर थावच पुत्र की साथ शिक्षिका में बैठकर वढे २१ ( वार्दित्र के शब्दों से द्वारिका नगरीकी बीच में होते हुवे अरिहंत अरिष्टमी के छत्रपर छब व पताकापर {पताका व विद्याधर व चारण युनियों को देखते वहां ही वे शिविका से नीचे उतर गये. ॥ २५ ॥ थावच पुत्र को सब से आगे कर के श्री कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमी की पास आये यावत् सब कथन मेघकुमार जैसे कहना. ईशान कौन में आये. वहां यावच गाथा पतिनीने हंस आभरणालंकार ग्रहण किया. और जैसे हर लूटने से मोतियों गिरते हैं वैसे ही
समान श्वेत वस्त्र में अति हुई कहने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
4 + सेलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 4+
२४३
www.jainelibrary.org