Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पा
पंथग पामोक्खाणं पंचमंतिसवाहोत्था उपपत्तियावेयणियाए चउन्त्रिह बुडीए उवत्रेया रज्जधुरचितयात्रि होत्या ! ततेणं थावच्चा पुत्ते णामं अणगारे सहस्सेणं अणगारणं सद्धिं जेणेव सेलग पुर नगरे सुभूमि उज्जाणे तेणेव समोसढे, रायाणिग्गते, धम्सो कहिओ धम्मं सोचा, जहाणं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहने उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरणं जाव पव्वतिया, तहाणं अहं णो संचाएमि पव्वतिए, अहणं देवाप्पियाणं अंतिए पंच्चाणुव्वतिथं जाव समणोवासए जाए, जाव अभिगय जीवाजीवे जात्र अप्पानं भावेमाणे विहरइ ॥ ३३ ॥ पंथगं पामोक्खाणं पंच मंतिसया समणोवासया जाया ॥ ३४ ॥ थावच्चापुत्ते दहिया जणवय विहारं विहरइ ॥ ३५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधिया णामं णयरी होत्था वण्णओ
(राज्य की चिन्ता करनेवाले थे. वहां पर थावच पुत्र ग्रामानुग्राम विचरते पधारे, राजा वंदन करने को [गया धर्म श्रवण किया और कहा कि अहो देवानुप्रिय ! आप की पास जैसे अन्य उग्रकुबाले भोगकुटवाले यावत् अपनी ऋद्धि समृद्धि का त्याग कर दीक्षा लेते हैं जैसे दीक्षा लेने में मैं असमर्थ हूं; परंतु आप की पाप मैं पांच अनुव्रत वगैरह ग्रहण कर श्रावक बनूंगा. फीर वह श्रावक हुवा यावत् जीवाजीव के स्वरूप जानकर यावत् अपनी आत्मा को भागते हुये विचरने लगा ॥ ३२ ॥ पंथक प्रमुख पांच सो मंत्री मा श्रमणोपासक हुए ||३४|| फीर वहां से थावच पुत्र व हिर जनपद देशमें विहार करने लगे || ३५ ॥ उस
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• प्रकाशक राजबहादुर ळाला सुखदेव सहयजी ज्वालाप्रसादजी
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