Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्र
41ष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकभाका प्रथम श्रुतसंघ
जाव णण्णत्थ अध्पणो कम्मक्खएणं, तं इन्छामिणं देवाणुप्पिया ! अण्णाण मिच्छत्त अपिरय कंसाय संचियरस अत्तणो कम्मक्खयं करिसए ॥ २२ ॥ तलेणं से कण्हवासुदेवे थावच्चा पुतणं एवं वुत्ते समाणे कोडवियपुरिसे सहावेइ २त्ता एवं वयासी गच्छहणं देवाणुपिया! बारावईए गयरीएं सिंघाडग जाव महापहेमु हत्थिखंध घरगया महया २ सहेणं उग्धोसेमाणा २ उग्घोसणं करेंह एवं खलु देवाणुपिया ! थावच्चा पुत्ते संसारभ उदिा भीए जण मरणाणं, इच्छति अरहतो भरिट्ठनेमिस्स
अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वतित्तते, तं जो खलु देवाणुप्पिया ! रायावा, जुवरायावा, सकते हैं परंतु कर्म क्षय से होता है तब अहो देवानुमिय ! अज्ञान, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय से संचित आत्मा के कर्मों का क्षय करना मैं चाहता हूं ॥ २२ ॥ यावर्चा पुत्र के ऐने कहने पर कृष्ण वासुदेवने । कौटुम्पिक पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो देवानुप्रिय ! तुम जाओ और हाथी पर बैठकर द्वारिका नगरी के शंकाटक,यावत् राजमर्म में बड २२.७मों से उद्घोषणा करो कि थावर्चा पुत्र संसारभय रे उद्विग्न नकर जन्म जरा मरण से भयभीत बना हुवा अरिईन अरिष्टनेमी की पास मुंडित होकर दीक्षा अंगीकार करते हैं इससे जो कोई राजा यु राना, देवी, कुमार ईश्वर, तलवर, कौटुम्बिक, पाडंबिक, ईभ, अंट'
438+सलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन ११
अर्थ |
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