Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
पर मनुवादक-पालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिधी -
__ अन्भुटेइ २त्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुढं गिण्हइ रत्ता मित्त जावसंपरिवडा,
जेणेव कण्हस्सवासुदेवेस्स भवणवरपडिदुवार देसभाए तेणेव उवागच्छइ२चा पडिहार देसिएणं मग्गेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ २,त्ता करयल वराति २त्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणेति २ चा एवंवयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया !मम एगपुत्ते थावच्चापुत्ते णामं दारए इडे जाव सेणं संसाराभउविग्गे इच्छति, अरहंतो अरिट्टनेमिस्स नाव पन्बाइत्तते महण्णं निक्खिमण सकारं करेमि,
तं इच्छामिण देवाणुप्पिया ! थावच्चा पुत्तस्स निक्खमणस्स छत्त मउड चामराओउव अवार्था माथापविनी अपने पासन से उठकर बहुन मूल्यवाली,बहुअर्थवाली मोंगे राजा को पाग्य वस्तुओं कानिजराना लेकर अपने परिवार सहित कृष्णासुदेव के भवन के प्रतिद्वार पाम आई. वहां से द्वारपालने मार्ग बताया जिस से वह कृष्ण वासुदेव की पास गई. वहां उसने हाथ जोडकर बधाये फीर महा वर्षवाली, पहेंगी, बहमूल्यवाली रामा को योग्य वस्तुयों का निजराना भेट किया. और ऐमा बोली. बहो दिवानप्रिय ! मेरा एक ही पुत्र थावरी नाम का है. ह इकारी है पावद
संसार मर से गइन बना दुवा श्री अरिष्ट नेपीनाथ की पाम दीक्ष लेना चाहता Tमें इस का बीमा पोत्सव करूंगा इस लिये जो देवानुपिय ! : यावर्चा पुत्र को
प्रकाशक राजावहादुर लाला एखदवसायी न्याछामसादनी.
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org