Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
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42+ षष्टाङ्ग शाताधर्मकथा का प्रथम श्रुवस्कंध
कुम्मए तेणेव पहारेत्थगमणाए ॥ ८ ॥ ततेणं ते कुम्मगा ते पावसियालए एज्जमाणं पासंति २. त्ता भीया तत्था तसिया उधिग्गा संजायभया, हत्थेय पाएय गीवाएय सएहिं काएहिं साहरति त्तार णिच्चला णिप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति ॥ ९ ॥ ततेणं ते पावसियाला जेणेव कुम्भगा तेणेव उवागच्छत्ति २ ता ते कुम्मगा सव्वतो समंता उच्चत्तेति, परियति, असारंति, संसारंति, चलिंति, घटृति, फंदंति, खोभंति, नहेहिं आलंपति, दतेडिय अक्खोडंति. नो चेवण संचाएति तेसिं कम्मगाणं सरीरस्स किंचिवा आवाहवा विवाहंवा उप्पाएत्तए छविछयंवा करित्तए ॥ १० ॥ ततेणं लगे ॥ ७॥ उतने में उक्त पापी शृगालकोंने उन कर्मो को देखे और उन को पास गये ॥ ८॥ उन पापी अगालकों को आते देखकर दोनों कूर्म (कायवे) डरे, त्रास पाये, खेदित हुए व भयभीत बने. अपने पांवों को गोपकर अपनी काया (दाल) की नीचे अपने शरीर का उनोने साहरन कर लिया. और वहां ही ठहर गये ॥ ९ ॥ अब वे पापी शृगालक उस कूर्य की पास भाकर उन को चारों तरफ देखन। लगे, उन को इधर उधर फिराये, आगे पीछे किये, गोल चक्कर फिराये, ऊंचे उछाले, उप को क्षोभ उत्पन्न किया, नखों से उन का शरीर खोदने लगे, दांतों से काटने लगे, परंतु उन के शरीर को किसी प्रकार से बाधा पीडा अथवा चमच्छेद करने में शक्तिवंत नहीं बने ॥ १०॥ तब पापी शृगालकोंने उन
दोकाचवे का चौथा अध्ययन 488
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