Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्ठान ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम-श्रुतस्कंध 484
ततो पच्छा मंसंच सोणियंच आहारैति २त्ता तं कुम्मगं स० तो समंता उव्वत्तेति जाव नोचेवणं संचाएति करेत्तए; ताहे दोच्चं अवकमति एवं चत्तारिविपाया जाय सणियं२ गीवं जीणेइ ॥ ततेणं पा सियालगा तेणं कुम्मएणं गीणिणिय पासंति २ त्ता सिग्धं चवलं नहेहिं दंतहिंय कवाडं विहाडेंति २त्ता तं कुम्मगं जीवियाओ ववरोति र त्ता, मंसंच सोणियंच आहारेति २ ॥ १३ ॥ एषामेव समणाउसो ! जो अम्हं णिग्गंथोवा णिग्गंथीवा आयरिय उवज्झायाणं अंतिए पवइए समाणे पंचय सेइदिया अगुत्ताणो
भवंति; सेणं इह भवेचत्र बहुणं समणाणं, बहुणं समणीणं, बहुणं सावयाणं, बहुणं करने में समर्थ हुवे नहीं. इस से दूसरी वक्त एकांत में गये, फीर कूर्मने दूसरा पर निकाला उसे पकडकर नख से खोदकर उस का आहार कर लिया, यो चार वक्त एकांत जाकर चार पांव काट लिये और फीर एकांत में गये उतने में उनने ग्रीवा निकाली जिस से उस की ग्रीबा को भी खा गये और उसका
जीवित से पृथक कर दिया अर्थात् वह कूर्य मरगया. और उस के मास व रुधिर दोनों पापी शगा-3 *लक खा गये ॥ १३ ॥ अहो आयुष्मान श्रमणो ! जैसे यह कूर्य इंद्रियों का गोपन नहीं करने से दुःखी है।
हुवा वैसे ही हमारे साधु साध्वी आचार्य उपाध्याय की पास दीक्षा धारकर पांचों इंद्रियों का गोपन नहीं है ।
दो कात्र का चौथा अध्ययन 498+
अर्थ
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