Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्टांग झालाधकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध +
णिक्खमंति २ ता जेणे सुहम्मा सभा जेणेव कोमुदिया भेरी तेणेव उवागच्छंति,तेणेव उवागच्छित्ता तं मेघोघरसिय गंभीर महुरसइं कोमदियं भेरी तालेति ॥ ततो निह महर गंभीर पडिसुएणं पिव सारइएणं बलाहएणं मणुरसिय भेरीए ॥ १२ ॥ ततेणं तीने कामदियाए भेरीए तालियाए समाणीए बारावीए णयरीए ना जायण विच्छिण्णाए दुवालस जायणा यामाए संघाडग तिय चउक्क चञ्चर कंदर दरीय विवर कुहर गिरि सिहर नगर गोपुर पानाय द्वार भवण देउल पडिमुथा, सयसहस्से संकुलंसह करेमाणा वारवतिणयरिं सम्भितंर बाहिरिय सन्वतो समंता से सद्दे विपरिसत्था ॥ १३ ॥ ततेणं वारावतीए णयरीए णव जोयण विच्छिण्णाए बारस कृष्ण व मुदेव की पाम मे निकलकर सुधर्मा सभा में -ये और कौमुदिका मेरी वजाइ. उस में से स्निग्ध, मधुर, गंभीर मतिध्वनिवाला, शरद ऋतु के मंघ समान गर्जनावाला शब्द निकला ।। १२ । इस तरह उस कौमुदी नाम की भेरी बनाने से नव योजन की विस्तारवाली व पारस योजन की चौडाइवाली द्वारिका नगरी में भंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चचर, कंदर, गुफा, खड्डों, नहरे, स्थानों, पर्वत, शिखर, गोपुर, मासादों के द्वार, भवन व देव कुलों वगैरह सर्व स्थान उस का शब्द सुना गया. और लाखों संकल्प करते हुवे द्वारका नगरी के पाभ्यंतर व पादिर चारों भक इस शब्द का विस्तार होगया ॥१३ ॥ जस!
40+ सलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 48
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