Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
२०३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अलक ऋषीजी
ते पावसियालगा ते कुम्मए दोपि तचंपि सव्वतोसमेता उव्वदेति, जात्र णो संचाएति करित्तए, तहेव संता तंता परितंता णिन्त्रिण्णासमाणा सनियं २ पञ्चसक्के ते २ सा एगंत मत्रकमंति मिचला णिप्कंदा तुसिणीषा संचिट्ठति ॥ ११ ॥ सस्थणं एगे कुम्मए तेपावसियालए चिरंगए दूरंगए जाणित्सा सनियं २ एगं पायें निच्छति २ ॥ १२ ॥ ततेणं ते पावसियाला तेणं कुम्मएणं सणियं २ एवं पायं णीयिं पासति २ ता सिग्धं चत्रलं तुरियं चंड जइण वेगेयं जेणेव से कुम्मए तेत्र उत्रागच्छेति २, ता तरसणं कुम्मगस्स त पायं णक्खहि आलुवंति, दंतहिं अक्खोडेंति,
को दो तीन बार उठाये यावत् दांतों से काटने लगे परंतु उन के शरीर को किसी प्रकार से बाधा पीडा करने को समर्थ नहीं हुवे. इस से संतप्त बने हुवे, निराश बने हुत्र शनैः पीछे सरकते हुये एकांत में जाकर निश्चल शांत खडे रहे ॥ ११ ॥ उन शृगालकों को दूर गये हुवे जानकर एक कूपने शनैः २एक पत्र चाहिर निकाला || १२ | इस तरह एक कूर्म को एक पांव बाहिर निकाला हुवा देखकर वे दोनों पापी शीघ्र ही उस की पास गये और उस के पांच को नख मे खोतरने लगे, दांतों से काटने लगे तत्पश्चात् उस के मांस व रुधिर का आहार किया परंतु उस को उठाकर पावत् उस के संपूर्ण शरीर का आहार
शृगालक
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.० प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी •
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