Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
+
२०१
+ षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम शुवस्कंध
॥ तृतीय अध्ययनम् ॥ जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते; तम्चस्सणं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्रे पन्नते ? एवं खल जंब ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपानामं नगरी होत्था वन्नओतीसेणं चंपाए नयरीए बहिया उत्तर पुरच्छिमे दिसीभाए सुभूभिभाए नामं उज्जाण होत्था, सव्वउय सुरम्ने, गंदणवणेइवसुहसुरभिय सीयलच्छाए समणुबद्ध ॥तरसणं सुभूमिभागस्स उजाणस्स उत्तरए एगदममि मालुया कच्छए होत्या वन्नओ॥१॥तत्थणं एगा वणमयूरी दोपुढे परियागते पिट्ठउंडो पंडुरे निवाणे अब तीसरा अध्ययन कहते हैं. अहो भगान् ! जब भी आपण भगांत महावीर स्वामीने ज्ञाता धर्मकथा के दूसरे अध्ययन का उक्त अर्थ कहा तब उस के तीसरा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? अहो जम्बू ! उस काल उस समय में चंपा नगरी थी. उस का वर्णन उपबाइ सूत्र से जानना. उम चम नगरी के बाहिर ईशानकून में समभिभाग नामक उद्यान था. यह सब ऋतु में मुरम्य नंदन वन जैमा अच्छ’ सुरभिगंधवाला शीतल छायाशला इत्यादि अनेक गुणोंवाला था. उस सुभूमिभाग उद्यान में उत्तर के एक देश में मालुवा कच्छ था. उस का वर्णन पूर्वोक्त दूसरे अध्ययन से जानना ॥ १ ॥ वहां
488+ मयुरे के अंडे का तीसरा अध्ययन
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org