Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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एगतओ सहियाणं. समुवगयाणं सन्निसण्णाणं सन्निचिट्ठाणं इमेयारूवे. मिहोकहासमुल्लावे समुजित्था जण्णं देशणुप्पिया ! सुहं दुहंवा पव्वजावा विदेसगमणंवा समुपजइ तन्ने अम्हेहिं एगयओ समच्च णिच्छारयव्वं तिकडु, अन्नमन्न मेयारूवं संगारं पडिसुणेति २ सकम्म संपउत्ता जायावि होत्था ॥ ४ ॥ तत्थणं चंपाए णयरीए देवदत्तानाम गणिया परिवसंति अड्डा जाव
भत्तपाणा चउसटुिं कला पंडिया, चउसट्ठि मणिया गुणोववेया, आउणत्तीसं विसेस अर्थ-बै उसे, उठते ऐमा वार्तालाप हवा कि अहे देवानुप्रिय ! यदि अपने दोनों में से किमी को सुख हो या
दुःख होवे, प्रवा लेना होवे या विदेश में जाना होवे. तब अपन दोनों को एकत्रित मिलकर उसे परिपूर्ण करना. इस तरह दोनों परम्पर संकेत करके अपने २ काम में प्रवृत्त हुए ॥ ४ ॥ उस चंपा नगरी में देवदत्ता नाम की गणिका रहती थी. वह बहुत ऋद्धिवंत थी, उस के घर में बहत भक्त पान होता था, बहुन जीवों का पोषण होता था, वह गीत नृत्यादि स्त्रियों की ६४ कलाओं में पंडिता थी, गणिकोके, '६४ गणों से वह युक्त थी, उन को तीम क्राडा करने के विशेष भेदों से क्रीडा करनेवाली थी, कंदर्प के इक्काम गणों से प्रधान थी, काम शास्त्र में बत्तीस पुरुषों के उपचार में कुशल थी, बाल्यावस्था में सुप्तनंब
१ आलिंगनादि आठ क्रिया और उस आठ में से प्रत्येक के आठ २ भेद यों ६४ भेद होते हैं. २ दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, एक जिव्हां, एक त्वचा, ओर एक मन यह ९ अंग जानना.
+ षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध +
____42 + मयुरे के अंडे का तीसरा अध्ययन 428
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