Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
11. सामंते थूणामडवं आहणह आसित समजितोवलितं सुगंध जाव' कलियं करेह
अम्हं पडिवालमाणा२ चिट्ठह ॥ जाव ते चिट्ठति ॥३॥ ततेणं से सत्यवाह दारगा दीपि कुटुंबिय पुरिसे सहावेति सहावेता एवं क्यासी खिप्पामेव लहुकरणजुत्त जातियं समखुर वालिहाण समलिहिय तिक्खसिंगएहिं श्ययामयघंट सुत्तरज्जुय, पवर कंचण खंधियणत्य पमाहोवग्गहिएयहिं नीलुप्पलकयामेलएहि, पवरगोण' जुवाणएहिं नाणामणिरयण कंचण घंटिया जाल परिक्खित्तं, पवरलक्खण गुणोववेयं
जुतामेव पवहण उवह ॥ तेवि तहेव उणांत ॥ ७॥ ततेणं ते सत्यवाह दारगा सुगंधित पदार्थों से मघमपायमान कर के हमारी प्रतिलेखना करते(रास्तादेखते) हुवेरहो. वे कौटुनिक पुरुषों उक्त कथनानुमार सब करके वहां उनकी मतिलेखना करते हवे रहने लगे. ॥६॥ पुन: दोनों सार्थवाह पुषोंने कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और कहा कि, अहो देवानुप्रिय ! रथ चलाने में चपल होवे वैसे बला से जोते हुवे, समान खुर व पूंछ वाले और चित्रित तीक्ष्ण शृंगों सहित, सुाणं घण्ट व सूवर्णमय सूत्र की दोरी की नाथ वाले, नीलोत्पल कमल के शिखर धारन कराये हु व श्रेष्ट थैलों से युक्त विविधि प्रकार के पणि, रत्नों, व सूर्ण की घंटिया से समुदाय से घराया हुवा श्रेष्टल लक्षण वाणा व भजे गुण बाला रथ नै परा करों. कौटुबिक पुरुषोंन उनकी आम नमार रथ तैयार कर दिया. ॥ ७॥ तत्पश्चात
H अनुवादक-पाका पुनि श्री अमोलक ऋषि
Panamannamrnmen
प्रकाशक-राजाभदुर लाला मुखदेवमहायजी ज्यामप्रसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org