Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
अमोलक ऋषिजी
** अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि
दारगाणं एवम पडणेति २ व्हाया कयवलिकम्मा किं तेपवर जाब सिरिस माणचेसा, जेणेव ते सत्यवाह दारगा तेणेव समःगया ॥ १० ॥ ततेणं ते सत्थवाह दारगा देवदत्तगणियाए सद्धिं जाण दुरुति २ ता चंपाए नयरीए मज्झमज्झणं जेणेव सुभूमिभाग उज्जाणे जेणेव नंदानुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति २ चा पवहणतो पच्चो रुहति २त्ता नंदा पोक्खरिणी उगर्हिति २त्ता जलमंजणंकरेति २ ता जलकिडं करति २ता पहाया देवदत्ताए सहि पच्चुरुर हंति; जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छति, तेव उवागच्छित्ता, अणुविसति सव्त्रालंकार भूसिया असत्था विसस्था मुहासण वरगया
वहां रथ से नीचे
उन का वचन अंगीकार किया उसने स्नान किया य वत् लक्ष्मी समान वेश धारण किया फीर सार्थवाह के पुत्र की पास गई ॥ १० ॥ वे सार्थवाह के बालक भो देवदत्त गणिका की संथ रथ पर आरूढ होकर चंपा नगरी के बीच में होते हुवे सुभूमि भाग उद्यान में नंद पुष्करणी की पास आये. उतरकर उस पुष्करणी में गये. उसमें जल मंज्जमकिया, स्न नकिया और देवदत्त की साथ बाहि निकलकर थूण मंडप में गये. सर्वालंकार से विभूषित, आश्वस्थ विश्वस्थ हो सुख देनेवाले आसनों पर रहे हुत्र देवत की साथ विपुल अशनादि, चारों आहार धूप, गंध, पुष्प व वस्त्र का आस्वाद विस्वाद व भोग करते हुवें
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० प्रकाशक- राजा बहादूर छाला सुखदेवसहायजी ज्वाला मादर्ज
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