Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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कर बापदंक-पालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
जाव झियायति ॥ १८ ॥ एवामेव समगाउसो! जो अम्हं निग्गत्थावा निग्गस्थिवा
आयरिए उवज्झायाणं अंतिए पन्वतिए समाणा पंचमहम्बएसु छज्जीवनीकाएसु निग्गंत्ये पावयणे संकिए जाव कलुस समावण्णे सेणं इहभवे चेव, बहुणं समणाणं बहुणं समीणं बहुणं सावियाणं बहुणं सावयाणं हीलाणिजे निंदणिजे खिसणिज्जे गरहणिजे परिभवणिज्जे ॥ परलोए वियणं आगच्छइ बहुणि दंडणाणिय जाव अणुपरियइ॥२९॥ ततेणं से जिणदत्त पुत्ते जेणेव मयूरी अडए तेणेव उवागच्छइ २त्ता वा. ॥ १८॥ अहो अयुष्यन्त श्रगणो ! एमे ही हमारे जो कोई साधु या सधी आचार्य उपाध्याय की पाम दीक्षा लेकर पांच महाव्रत, छ जीव निकाय व निग्रंन्ध प्रवचन में शंका लागे अन्य मतों की यांच्छा करेगे. करनी फल प्राप्त में संदेह करेंगे, भेद भाव संपन्न होगे, व कालुष्यपना रखेंगे वे इम भवमें बहुत साधु साध्वी श्रवक व श्राविकाओंमें हीलना पडेंगे, निन्दनीय होंगे, खिमाने होंगे, गह:-अपमान
गे, वगैर दुःखों से दुःखी बनेंगे और परलोक में भी चतुर्गतिके प्रत संमार में परिभ्रमण करके अनेक प्रकर का दर पाग.॥१९॥ अब जो जिनदत्त पुत्र था वह मयूरी के अण्डे के पास गया. वह शंका गहित
• यह कथन सुधा स्वामी का है.
प्रकाशक राजाबहादुर काला एखदवसायी चालामसादजी .
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