Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्टांगहासाधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
व्हाया जाव सरीरा, पवहणं दुरुहति २ ता जेणेव देवदत्ताए गणियाएगिहे तेणेव उवागन्छंति २ ता. पवहणाओ पच्चोरुहंति देवदत्त ए गणियागिहं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता ॥ तए:: से देवदत्तागाणया से सत्यवाह दारए एजमाणे पासति २त्ता हट्र तुझा आसणाओ अब्भुटेति २ त्ता सत्तट्ट पायाई अणुगच्छति २त्ता ते सत्य वाहदारवं एवं वधासी संदिसणंतुम देवाणुप्पिया! किमिहा गमण पओयणं ? ॥८॥ ततेणं ते सत्थवाह दारगा देवदत्तगणियं एवं वयासी - इच्छामाणं देवाणुप्पिए ! तुमेहिं साई सुभमिभागस्स उजाणस्स उजाणसिरि पच्चाणुब्भवमाणा विहरित्तए ॥९॥ ततणं सा देवदत्ता माणिया तेसिं सत्यवाह वे दोनों शेठ पुत्रोंने स्नानकिया यावत् सालक र से शरीर विभूषित किया और उमरगपर बैठकर देवदत्ता : गणिका की पास जानेलगे. उसके घर पास आर उस रथ से नीचे उत्तरे और देवदचा के गृहमें दोनों प्रवेश किया. उन दोनों सार्थवाह के पुत्रों को आत देखकर वह देवदत्ता गणिका आनंदित हुई. अपने आसन में उठकर सात आठ पांव सन्मुख गइ. और उनको ऐसा बोली अही दव नुप्रिय ! अ.प यहां किस कार्या को पधारे हो सो कहो।।८॥ दोनों सार्थवाह के पुत्रोंने उस गणिका को ऐसा कहा कि अहो देवानु प्रिय : सुभूपि भाग उद्यान में तुम्हारी साथ उद्यान की शोभा का अनुभव करना हम चाहते हैं ॥१॥ गणिकाने
मयूरी क अंडे का तीसरा अध्ययन 42
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