Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अर्थ
१३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषी
रममाणी, एक्कवसिरतिगुणप्पहाणा, बत्तीस पुरिसोवयार कुसला, णवंगलुत्त पांडे बोहिया, अट्ठारसदेसी भासाविसारया, सिंगारागार चारुबेसा, संगयगय हसिय भणिय विहिय विलास ललिप संलावनिउणजुत्तो, बयारकुमला ऊसियज्झया सहस्मलंभा, विदिण्णछत्तचामरबालवियणीया, कन्नीरहप्पयाया होत्था || बहूणं गणिया सहरसाणं अहेवच्चं. जाव विहरति ॥ ५ ॥ ततेणं तेसिं सत्थवाह दारगाण अन्नया कयाइ पुव्त्रावरण्हकालसमयम जिमिय भुत्तत्तरागयाणं समाजानं आयताण चोक्खाणं परयसूई भूयाणं मुहासण वरगयाणं इमेघारूत्रे मिहो अंगों की प्रतिबंधिता थी; अर्थात् यौवनावस्था प्राप्त होने से नत्र अंगों भोग योग्य स्वाद ग्रहण करने के लिये जाग्रत हुने थे, अठारह देश की भाषा में पंडिता थी, श्रृंगार के स्थानक समान उस का मनोहर वेष था, संगति वगैरह सब में कुशल थी, उस के घर पर ध्वजा फररा रही थी, वह एक हजार दिनार ग्रहण करनेवाली थी, अर्थात् हजार सुवर्ण मढोर देनेवाले को ही आदर करती थी, राज्य तरफ से छत्र व चंवर उम को प्राप्त हुए थे. कन्नी रथपर जाती आती थी, और अन्य अनेक गणिकाओं का अधिपतिपना करती हुई विचरती थी ॥ ५ ॥ एकदा दिन के पूर्व भाग ( प्रहर दिन ) में भोजन जीमकर हाथ मुख स्वच्छ कर परम अचिभून बनकर सुखासन पर बैठे हुने थे. उस समय उन दोनों को परस्पर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
• प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी •
२०४
www.jainelibrary.org