Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ammam
१४ अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
भद्दा भारिया कल्लं जाव जलंते विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेइ भोयणपिंडए करेति २ भायणाइ पक्खिवइ २ लंच्छिय मुयिं करेति २ एगंच सुरभिवारि पडिपुन्नं दगवारयं करेंति २ पंथयं दासचेडयं सहाविति सद्दावित्ता एवं वयासी-- गच्छहणं तुम देवाणुप्पिया ! इमं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धपणस्स सत्थवाहस्स उवणेहि॥ ३१ ॥ ततेणं से पंथए भदाए सत्यवाहीए एवं वुत्तेसमाणे हट्ठ तुढे तं भोयणपडियंतच सुरभिवारिपडिपुन्नं दगवारयं
गेण्हइ २ त्ता सयाओ गिहाओ पडिगिक्खमइ सयाउ गिह ओ पडिणिक्खमित्ता • रायगिहं जयरं मझमझेणं जेणेव चारगमाला जेगव धण्णेसत्थवाहे तेणेव प्रभात होते विपुल अशनादि बताकर भोजन पिण्ड तैयार किया. उसे एक पात्र में रख कर उस का मुखबंध किया और सुगंधि जल से एक पात्र भरा. फीर पंथक नापक चेटक को वोलाकर कहा कि अहोरी देवानुपिय! इम अशनादि लेकर केदखाने में धमासार्थवाह की पास जाओ और उने यह देवो ॥१॥ भद्रा सार्थव हीने ऐसा काम बतलाया इससे वह पंथक हृष्ठ तुष्ट हुवा और भेजन व पानी का पात्र लेकर अपने गृहसे नीकलता हुवा राजगृह नगर के बीचमें होता हुवा घरकशालामें धन्नासार्थवाह की पास गया..|
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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