Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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488+ षष्टांग शासाधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 448
इमेहिं वहहिं कसप्पहारेहिं जाव लयाप्पहारेहि तण्हाएय छुहाएय परिष्भवमाणस्स णस्थि केइ उच्चारेवा पासवणेबा ॥ तं छंदेणं तुमं देवाणुप्पिया! एगंत अवक्कमेचा उच्चार पास. वणं परिट्ठावेहि ॥ ३५ ॥ तलेणं से धण्णे सत्यवाहे बिनएणं तकरेणं एवं धुत्तेसमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ ३६ ॥ ततेणं धण्णे सत्यवाहे मुहुत्तरस्स बलियं तरागं उच्चार पासवणेणं उवाहिजमाणे विजयं तकरं एवं वयासी-एहि ताव विजया ! आव अवकमामो ॥ ३७ ॥ तएणं से विजए तक्करे धण्णं सत्थवाहं एवं बयासी-जइणं तुम देवाणुप्पिया!ताओ विपुलाओ असणं पाणं खाइमं साइमं संविभाग करेहि तओहं
सुमेहिं सद्धिं एगंतं अवकमामि ॥ ३८ ॥ ततेणं से धण्णे सत्थवाहे विजयं एवं क्यासी की बाधा हुई है परंतु मुझे इस चाबुक के प्रहार से यावत् लता के प्रहार से, वैसे ही क्षुधा तृषा से पीडित होने से उच्चार प्रस्रवण की बाधा नहीं है. इस से तुम स्वयमेव एकांत में जाकर उच्चार प्रस्रवण करी ॥३॥ विजय चोर के ऐसा कहने से घमासार्यवाह चूप रहा ॥ ३६ ॥ पुनः पन्ना सार्थवाह को उच्चार प्रस्रवण की विशेष वांधा होने से विजय चोर को कहा. अरे विजय ! चल अपन एकांत में चले वहां चार प्रस्रवण मैं करूं ॥ ३७ ॥ तब विजय चोरने कहा कि अब से तुमारी पास जो अशनादि आवे उस में से मुझे विभाग कर दो तो मैं तुम्हारी साथ चलं ॥ ३८ ॥ धन्ना सार्थवाहने विजय चोर को कहा कि अब मैं
घना सार्थवाह का दूसरा अध्ययन
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