Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अमोलक पनीर
सबतो समंता मग्गण गवेसणं करेतिरदेवदिन्नस्स दारगस्स कत्थ सुइवा खुइंवा,उर्चिा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धण्णे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता धण्णं
सस्थवाहं एवं वयासी एवं खलु सामी महासंस्थवाही देवदिन्नं दारयं व्हायं जाव ममहत्यसि दलयति तएणं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिहामि जाव मग्गण गवसणं करेमि, तं णणजइणं सामी! देवदिन्नए दारए केणय तणेतिवा,अवहरितेला,अक्खित्तेवा पायडिए धण्णरस सस्थवाहस्स एयमटुं णिवेएति ॥ २४ ॥ ततेणं से धण्णे सत्थवाहे पंथरस दासचेडस्स एमपट्टे सोचा णिप्तम्म सेणय महापुत्तसोएगा भिभूएसमाणे
परम छित्तेव चंपगपायवे धसत्ति धरणियलासि सव्यंगहि सन्निव ॥ २५ ॥ तएण मीरने से अपने घर आया और धनासार्यवाह की पास जाकर ऐसा बोला अहो स्वामिन्! भद्रा सार्थवाहीने देवदिम कुमार को मान करा के यावत् बहुत पसालंकार से विभूषित करा के मुझे दिया था. पीछे देवदिन्न बालक को मैं कम्मर पर बैठाकर यावत् मार्ग की गवेषणा की. अहो स्वामिन् ! देवदिन्न बालक को किसने हरन किया यह मैं नहीं जानता हूं यों कह कर वह घमा सार्थवाह के पांव में गिरपडा पंथक की पास से ऐसा सुनकर वह पन्नासार्थवाह को बहुन शोक हुवा. और उस शोक से पराभव पायाहुया जैसे परशु से छेदाया हुषा चंपक वृक्ष पडता है वैसे ही पृथ्वीपर गिरपडा.॥२५॥ अब धमासार्थवाद
..प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी
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