Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अष्टांग ज्ञात धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्वन्य
-
बहुजणं च्छिदेय जार एवंचगं विरइ॥ ९ ॥ ततेणं तीसे भदए. भारियाए अन्नयाकयाइ पुण्वस्तावत्काल समर्थ कुटुंबजागरियं जागराणीए अरू अझ अहं धणं सत्यवाणं सद्धिं बहूणि वासागि सह फारस रत सत्राणि माणुस्लगाई कामभोगाई पचणुभात्रमाण विहरमि, नो चेत्र अहं दार वा दारियंत्रापयःयामि तं धन्नाओगं तिओ अम्मयाओ जाव सुलद्धेणं माणुस्तए जम्मजीत्रिय फले, तालि अम्नयाणं जानिं मन्नेणियग कुछि संभूयाई थाई, महुलमुलाबाई मम्मणवयंपियाई मुलकखदे भागं
ई में इशारों में,
की गुफाओं में, छिद्र बिशा खड्डे कोपरे वगैरह में या विचरता था ए९॥ तत्पश्चात् भद्रा भार्य को पूर्व रात्रि के काल में हुटुम्ब जागरणा करते हुये ऐसा विचार हुन कि मैं धन्ना की साथ बहुत वर्षो से शब्द, स्पर्श, रूप, र बगैर मनुष्य के काम में यों भोगती हूइ विचरती हूं परंतु तुझे कोई पुत्र अथवा पुत्री नहीं हुई. इसमें ओ नाता अपने कुक्षि में उत्पन्न हुवा, स्तन में दुग्ध उत्पन्न करने वाला मधुर आळाप करने वाला, मन मन में जलन करने वाला, स्तन के मूल भाग में से सरकता हुवा बालक को स्तनपान कराती है, कमल समान कोमल हाथों से के कर जो अपने खोले में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
ॐ घना सार्थवाह का दूसरा अध्ययन क
१६७
www.jainelibrary.org