Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4 पष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकया का प्रथम वस्कंध
॥ १५ ॥ ततेणं सां भद्दा सत्यवाही घण्गेणं सत्थवाहेणं अन्भणुष्णायासमाणी हट्ट तुट्ठ जात्र विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव ण्हाया जात्र उल्लगपडसाडगा जेणेव णाघर गए जाव धूवं डहइ २ त्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवा गच्छित्ता ततेणं तातो मित्तनाति जाव णय महिलाओ भद्दा सत्यवाही सवालंकार विभूतियं करत तरणं सा भद्दा सत्यवाही ताहि मित्तणाई नियग सयण संबंधि परिजण नगर महिलाहि सार्द्धं विपुलं अस पाणं खाइमं साइमं जात्र परिभुंजमा णीय दोहलं विणेइ २ जामेव दिसिं पाउ भूयां तामेवदिसि पडिगया ॥ १६ ॥ ततेणं सा भद्दासत्यवाही संपुन दाहला जातं गन्धं सुहंसुहेणं परिवहइ ॥ १७ ॥ ततेणं सा भद्दा [ मत करो. ।। १५ ।। धन्ना सार्थवाह की अनुज्ञा लेकर भद्रा सार्थवाहीनीने हृष्ट दुष्टं बनकर विपुल अनादि बनवाये यावत् पुष्करणी में स्नान किया, कोगले किये यावत् भीगे हुने वन सहितं नागादि देवताओं का देवालय यावत् वैश्रमण देवका देवालय में आइ यावत् धूप देकर प्रणाम किया. फीर पुष्करणी सबढी की पास जाकर स्वजन संबंधी यावद नगर जन की महिलाओंने भद्रासार्थवाही को सार्बलंकार से विभूषित की फोर स्वजन संबंधि मित्र जन व नगर जन की महिलाओं की साथ विपुल अशनादि भोगवती (हुइ दोहद पूर्ण करने लगी. फीर सब अपने २ स्थान गये. ॥ १६ ॥ इस तरह दोडद संपूर्ण करके वह भद्रा सार्ववाहिनी सुख पूर्वक गर्भ की रक्षा करने लगी. ॥ १७ ॥ नत्र मास व बाढे सात रात्रि दिन
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4 घनासार्थवाह का दूसरा अध्ययन 42
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